सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी, अपनी अद्वितीय विरासत, शैक्षिक दृष्टिकोण, और सांस्कृतिक महत्व के कारण विशेष महत्व रखता है जिसका एक संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है:
1791 में स्थापना 'सरकारी संस्कृत कॉलेज' के रूप में हुई थी, यह भारत के सबसे पुराने संस्कृत शिक्षा संस्थानों में से एक है।
वर्ष 1958 में सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के नाम से पुनर्नामित किया गया, जो उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और महान विद्वान डॉ. सम्पूर्णानन्द को समर्पित है।
यह विश्वविद्यालय भारत की प्राचीन विद्या परंपराओं जैसे वेद, वेदान्त, न्याय, मीमांसा, ज्योतिष, और आयुर्वेद के संरक्षण और प्रसार में अग्रणी रहा है।
यह विश्वविद्यालय संपूर्ण रूप से संस्कृत और भारतीय ज्ञान परंपराओं के अध्ययन हेतु समर्पित है।
यहां वैदिक साहित्य, दर्शन, व्याकरण, खगोलशास्त्र, ज्योतिष और पारंपरिक भारतीय विज्ञानों में डिग्री पाठ्यक्रम संचालित होते हैं, जो इसे एक विशिष्ट और दुर्लभ शैक्षिक केंद्र बनाता है।
यह संस्थान गुरु-शिष्य परंपरा को आज भी जीवंत रखे हुए है, जिसमें आध्यात्मिक अनुशासन और परंपरागत शिक्षण शैली को आधुनिक शिक्षा प्रणाली से जोड़ा गया है।
विश्वभर से शोधार्थी और छात्र भारतीय दर्शन, संस्कृत और प्राच्य अध्ययन के लिए यहाँ आते हैं।
यह विश्वविद्यालय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी विद्वत्ता और शास्त्रीय योगदान के लिए प्रसिद्ध है।
वाराणसी में स्थित यह विश्वविद्यालय, एक आध्यात्मिक और बौद्धिक केंद्र है जो वर्षों से ज्ञान और संस्कृति का प्रतीक रहा है।
यह भारतीय संस्कृति, धर्म और ज्ञान परंपराओं के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
विश्वविद्यालय में दुर्लभ पांडुलिपियों का संग्रह है तथा यह शास्त्रीय साहित्य पर शोध करता है।
यहां शास्त्री, आचार्य, और विद्यावारिधि (PhD समकक्ष) जैसे परंपरागत एवं आधुनिक पाठ्यक्रम संचालित होते हैं।
सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय केवल एक विश्वविद्यालय नहीं, बल्कि यह भारत की प्राचीन बौद्धिक और आध्यात्मिक विरासत का संरक्षक है। इसकी विशेषता इसकी समर्पित संस्कृत शिक्षा, धार्मिक एवं सांस्कृतिक योगदान, तथा विश्व स्तर पर प्रतिष्ठा में निहित है।