Prof. Bihari Lal Sharma Vice- Chancellor (w.e.f. 22-08-2023) Phone – 0542- 2204089, +91-9911117489 Fax – 0542- 2206617 E-mail – vc@ssvv.ac.in |
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भारतभूमि अनादिकाल से ही ज्ञान, विज्ञान, साधना, संस्कृति और दर्शन की पुण्यभूमि रही है। इसी पवित्र परम्परा के संरक्षण, संवर्धन और आधुनिक नवाचार के समन्वय हेतु वाराणसी स्थित सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय विगत अनेक दशकों से एक जीवन्त केन्द्र के रूप में प्रतिष्ठित है। यह विश्वविद्यालय केवल एक शिक्षण संस्थान भर नहीं है, अपितु भारतीय ज्ञान परम्परा का एक सशक्त संवाहक, संस्कृत भाषा का अखंड दीपस्तम्भ, और सांस्कृतिक चेतना का मानबिंदु बन चुका है। हमारा यह विश्वास रहा है कि वाङ्मय केवल पुस्तकों में सीमित ज्ञान नहीं है, अपितु यह जीवन की साधना है — जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को आलोकित करने वाली सा विद्या या विमुक्तये की उद्घोषणा। इस आदर्श को आत्मसात् करते हुए सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय ने संस्कृत अध्ययन-अध्यापन को केवल परम्परा के स्तर पर नहीं, बल्कि विकासशील और उत्तरदायी राष्ट्रीय बौद्धिक आन्दोलन के रूप में स्वीकार किया है। आज विश्वविद्यालय की 600 से अधिक शाखाएँ सम्पूर्ण राष्ट्र में सक्रिय हैं। इन केन्द्रों के माध्यम से हम लाखों विद्यार्थियों तक वह शिक्षा पहुँचा रहे हैं, जो केवल रोजगारपरक नहीं, बल्कि चरित्र, संस्कृति, आस्था और राष्ट्रधर्म के प्रति सजग नागरिकों का निर्माण करती है। हम एक लाख से अधिक प्राचीन पाण्डुलिपियों के संरक्षण कार्य को गति देते हुए उनका डिजिटलीकरण करने के लिये भी संकल्पित होकर कार्य कर रहे हैं — यह न केवल हमारे बौद्धिक उत्तराधिकार की रक्षा है, बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए ज्ञान की पुनः प्रतिष्ठापना की आधारशिला भी। विश्वविद्यालय का विस्तीर्ण परिसर — जिसमें 22 शैक्षणिक विभाग, 5 संकाय एवं विविध देवमंदिर, एक समर्पित शोधपरक वातावरण, डिजिटल कक्षायें , अत्याधुनिक पुस्तकालय, अनुसन्धान प्रयोगशालायें तथा छात्र-कल्याण के लिए उत्कृष्ट अधोसंरचना उपलब्ध है ।केवल भौतिक संसाधनों का संग्रह नहीं है, यह एक संस्कृति-समृद्ध, चिन्तनशील, और साधनाशील परिसर है, जहाँ विद्याध्ययन एक आध्यात्मिक अनुभव बन जाता है। हमारा उद्देश्य केवल पाठ्यक्रम आधारित अध्ययन नहीं, अपितु शोध, संवाद और संस्कार आधारित जीवनशैली का निर्माण करना है। विश्वविद्यालय आज डिजिटल युग के अनुकूल स्वयं को परिवर्तित करते हुए, ऑनलाइन प्रशिक्षण, संस्कृत संवाद मंचों, सोशल मीडिया एवं आभासी संगोष्ठियों के माध्यम से समाज के अन्तिम व्यक्ति तक पहुँचने का सफल प्रयास कर रहा है। यह संस्था केवल अतीत की रक्षा नहीं करती, बल्कि भविष्य की संभावनाओं को रचती है।नवाचार के माध्यम से परम्परा का पुनर्जागरण इसका मूल व्रत है। आज जब भारत वैश्विक मंच पर सांस्कृतिक नेतृत्व की ओर अग्रसर है, तब सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय एक धरोहर के रूप में नहीं, बल्कि दिशा-प्रदायक संस्था के रूप में उभर रहा है। शिक्षा, धर्म, नीति, समाज, पुरातत्त्व, वेद,व्याकरण,साहित्य, दर्शन,आयुर्वेद, अर्थशास्त्र, ज्योतिष, वास्तु, संगीत, नाट्य , पालि- प्राकृत-बौद्ध एवं आधुनिक लोकविद्याओं सहित भारतीय ज्ञान की समस्त धाराओं का समावेश करते हुए यह संस्थान एक एकीकृत राष्ट्रीय पुनर्जागरण अभियान में संलग्न है। हमारा यह स्पष्ट संकल्प है कि हम भविष्य के भारत को संस्कारयुक्त, संवेदनशील और आत्मबोधपूर्ण बनायें ।और इसके लिए आवश्यक है वह शिक्षा जो केवल जानने भर की नहीं, जीने योग्य बनाती है। अन्त में, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय उन सभी विद्वानों, शिक्षकों, शोधार्थियों, संस्कृत साधकों, नीति-निर्माताओं एवं समाज के समस्त जागरूक वर्गों को आमंत्रित करता है, जो इस ज्ञानयज्ञ में सहभागी बनकर नूतन भारत के निर्माण में अपनी आहुति देना चाहते हैं। Since time immemorial, the land of Bharat (India) has been sanctified as a cradle of knowledge, science, spiritual discipline, culture, and philosophy. In alignment with this sacred heritage, Sampurnanand Sanskrit University, situated in the spiritual and cultural capital of Varanasi, has, for several decades, stood as a dynamic and vibrant centre for the preservation, propagation, and innovative renewal of India’s ancient wisdom. This university is not merely an educational institution; it is a powerful conduit of the Indian knowledge tradition, an unwavering beacon of the Sanskrit language, and a vital focal point of our civilisational consciousness. We believe that Vāṅmaya (literature) is not confined to books—it is a discipline of life itself. It is that transformative force which enlightens every sphere of human existence, echoing the timeless declaration: “Sā Vidyā Yā Vimuktaye”—True knowledge is that which liberates. Guided by this ideal, Sampurnanand Sanskrit University has embraced Sanskrit education not as a relic of the past but as a living, evolving national intellectual movement with contemporary relevance. Today, the university operates through more than 600 affiliated centres across India, imparting to lakhs of students an education that is not merely vocational, but one that nurtures character, cultural identity, spiritual grounding, and a profound sense of national duty. In addition, we are deeply committed to the preservation and digitisation of over 100,000 ancient manuscripts, a monumental endeavour that safeguards our intellectual legacy and lays a robust foundation for future generations. |
विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति-गण
डॉ. आदित्यनाथ झा | 03-03-1958 से 15-03-1960 |
डॉ.क्षेत्रेशचन्द्र चट्टोपाध्याय | 16-03-1960 से 16-08-1960 |
डॉ. के.ए.एस.अय्यर | 17-08-1960 से 15-11-1960 |
श्री कुबेरनाथ शुक्ल | 16-11-1960 से 30-04-1961 |
डॉ.मंगलदेव शास्त्री | 01-05-1961 से 30-10-1961 |
श्री कुबेरनाथ शुक्ल | 31-10-1961 से 19-01-1962 |
डॉ. तिरा.वे.मूर्ति | 20-01-1962 से 16-08-1962 |
श्री सुरतिनारायणमणि त्रिपाठी | 17-08-1962 से 09-06-1966 |
श्री सुरेन्द्रनाथ शास्त्री | 10-06-1966 से 09-06-1967 |
डॉ. राय गोविन्द चन्द्र | 10-06-1967 से 04-07-1967 |
डॉ. गौरीनाथ शास्त्री | 05-07-1967 से 05-08-1970 |
डॉ. राय गोविन्द चन्द्र | 05-08-1970 से 28-02-1971 |
डॉ. सत्यव्रत सिंह | 01-03-1971 से 31-10-1971 |
डॉ. बलराम उपाध्याय | 01-11-1971 से 01-07-1974 |
प्रो. करूणापति त्रिपाठी | 02-07-1974 से 25-03-1978 |
प्रो. बदरीनाथ शुक्ल | 26-03-1978 से 28-03-1981 |
प्रो. गौरीनाथ शास्त्री | 29-03-1981 से 28-03-1984 |
प्रो. रामकरण शर्मा | 29-03-1984 से 31-12-1985 |
प्रो. देवस्वरूप मिश्र | 01-02-1986 से 19-09-1986 |
प्रो. वि.वेकटाचलम् | 20-09-1986 से 19-09-1989 |
डॉ. राजदेव मिश्र | 19-09-1989 से 19-05-1990 |
डॉ. विद्यानिवास मिश्र | 19-05-1990 से 25-10-1992 |
प्रो. वि.वेकटाचलम् | 26-10-1992 से 31-12-1996 |
प्रो. युगल किशोर मिश्र | 01-01-1997 से 02-01-1997 |
डॉ. मण्डन मिश्र | 03-01-1997 से 23-04-1999 |
प्रो. राममूर्ति शर्मा | 24-04-1999 से 24-04-2002 |
प्रो. राजेन्द्र मिश्र | 24-04-2002 से 23-04-2005 |
प्रो. नरेन्द्र नाथ पाण्डेय (प्रभार) | 24-04-2005 से 08-06-2005 |
प्रो. अशोक कुमार कालिया | 08-06-2005 से 08-06-2008 |
श्री सुरेश चन्द्रा (प्रभार) | 08-06-2008 से 03-08-2008 |
प्रो. वेम्पटि कुटुम्ब शास्त्री | 03-08-2008 से 02-02-2011 |
प्रो. बिन्दा प्रसाद मिश्र | 03-02-2011 से 31-07-2014 |
डॉ. पृथ्वीश नाग (प्रभार) | 31-07-2014 से 01-02-2015 |
प्रो. यदुनाथ प्रसाद दूबे | 02-02-2015 से 23-05-2018 |
प्रो. राजाराम शुक्ल | 24-05-2018 से 23-05-2021 |
प्रो. आलोक कुमार राय (प्रभार) | 23-05-2021 से 12-06-2021 |
प्रो. हरेराम त्रिपाठी | 12-06-2021 से 04-06-2023 |
प्रो. ए.के.त्यागी (प्रभार) | 07-06-2-23 से 21-06-2023 |